April 25, 2024

Jagriti TV

न्यूज एवं एंटरटेनमेंट चैनल

सुपरटेक लिमिटेड हुई दिवालिया, 25000 होम बायर्स टेंशन में

सुपरटेक लिमिटेड की मुश्किल और बढ़ गई है। पहले तो सुप्रीम कोर्ट ने नियमों के उल्लंघन के चलते नोएडा में सुपरटेक के एमेराल्ड कोर्ट प्रॉजेक्ट के 40 मंजिला दो टावरों को गिराने का आदेश दिया। अब राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) ने शुक्रवार को रियल एस्टेट फर्म सुपरटेक लिमिटेड को दिवालिया घोषित कर दिया और दिवालिया प्रक्रिया शुरू कर दी।

एनसीएलटी की एक पीठ ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से दायर याचिका की सुनवाई करते हुए सुपरटेक लिमिटेड के निदेशक मंडल के स्थान पर एक अंतरिम समाधान पेशेवर (IRP) नियुक्त करने की मंजूरी दे दी। सुपरटेक लिमिटेड मामले में हितेश गोयल को आईआरपी नियुक्त किया गया है। सुपरटेक लिमिटेड पर करीब 1,200 करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है। इसमें से करीब 510 करोड़ रुपये का कर्ज यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने दिया था।

सुपरटेक को दिवालिया घोषित किए जाने के बाद इसके पूरे न हो चुके प्रॉजेक्ट्स में फ्लैट खरीदने वालों को टेंशन होने लगी है। घर खरीदारों के मन में डर है कि अब सुपरटेक प्रॉजेक्ट्स का क्या होगा, उनके फ्लैट का क्या होगा, क्या उनके लगाए हुए पैसे डूब जाएंगे? अगर पैसे नहीं डूबेंगे तो फ्लैट कब मिलेंगे, वक्त पर मिलेंगे या देरी से मिलेंगे?

दिवालिया घोषित होने के बाद आगे क्या होगा?
IRP क्रेडिटर्स की एक कमेटी बनाएगा
यह होमबायर्स से क्लेम्स मांगेगा, जिसके लिए अलॉटमेंट लेटर, आइडेंटिटी प्रूफ जैसे डॉक्युमेंट जमा करने होंगे
जांच के बाद क्लेम्स को स्वीकृत किया जाएगा और वोटिंग अधिकार असाइन किए जाएंगे
इसके इतर आईआरपी उन एंटिटीज से भी रुचिपत्र मांगेगा, जो रिजॉल्यूशन एप्लीकेंट के तौर पर सुपरटेक को टेकओवर कर सकते हैं
आईआरपी इस बात की भी जांच करेगा कि कहीं फंड का डायवर्जन या कंपनी को चलाने में फ्रॉड तो नहीं हुआ है
निर्धारित मैट्रिक्स के आधार पर कंपनियों को शॉर्टलिस्ट किया जाएगा और बोलियां मांगी जाएंगी
इसके बाद ऑफर्स को वोटिंग के लिए रखा जाएगा और इस दौरान होम बायर्स भी अपनी राय देंगे
वोटिंग के बाद क्रेडिटर्स की कमेटी अपनी मंजूरी देगी और फैसले को पुष्टि के लिए एनसीएलटी को भेजेगी
एनसीएलटी की ओर से मंजूरी मिल जाने के बाद नए रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल, सुपरटेक को टेकओवर कर लेंगे
होम लोन EMI का क्या होगा?
सुपरटेक लिमिटेड के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद हो सकता है कि बायर्स को अपने घर की प्राप्ति के लिए दावा किए गए वक्त से ज्यादा इंतजार करना पड़ा। बायर्स के पास दो विकल्प हैं या तो वे अपनी होम लोन ईएमआई का भुगतान करना जारी रखें, लोन को वक्त पर पूरा चुकता कर दें और फिर अपना फ्लैट मिलने का इंतजार करें। या फिर वे अपने बैंक को यह आवेदन कर सकते हैं कि चूंकि उनके रियल एस्टेट डेवलपर के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया चल रही है, लिहाजा रिजॉल्यूशन प्रॉसेस पूरा होने तक ईएमआई पर मोरेटोरियम लगाया जाए। लेकिन अगर याद रहे कि ईएमआई मोरेटोरियम विकल्प में एक्स्ट्रा भुगतान करना पड़ता है।

ये रियल एस्टेट डेवलपर्स भी हो चुके हैं दिवालिया
सुपरटेक का दावा है कि एनसीएलटी के आदेश से सुपरटेक के जो प्रॉजेक्ट प्रभावित नहीं होंगे, उनमें बसरा, सुपरनोवा, ओआरबी, गोल्फ कंट्री, ह्यूस, अजालिया, ईस्क्वायर और वैली शामिल हैं। दिवालिया घोषित होने के बाद सुपरटेक लिमिटेड जेपी, Lotus 3Cs की कुछ कंपनियों वाली उस लिस्ट में शामिल हो गई है, जिसमें इन्सॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रॉसेस शुरू तो हो चुकी है लेकिन होम बायर्स को बहुत ज्यादा प्रगति होती नहीं दिख रही है। मामले सालों से कई लीगल फोरम्स में कई दौर की प्रक्रियाओं से गुजर रहे हैं। इस लिस्ट में दो और डेवलपर्स यूनिटेक व आम्रपाली भी शामिल हैं, जिनके प्रॉजेक्ट्स के पूर्ण होने की प्रक्रिया पर खुद सुप्रीम कोर्ट नजर रखे हुए है।

आम्रपाली को साल 2017 में दिवालिया घोषित किया गया था। 23 जुलाई 2019 को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने प्रमोटर अनिल शर्मा और शिव प्रिया को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। साथ ही नोएडा व ग्रेटर नोएडा में क्रमश: 7 व 9 आम्रपाली प्रॉजेक्ट रिवाइव करने का टास्क सीनियर एडवोकेट आर वेंकटरमानी को दिया। यह पहला मामला था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने हाउसिंग प्रॉजेक्ट को पूरा कराने का जिम्मा खुद पर लिया। जेपी इंफ्राटेक (Jaypee Infra) अगस्त 2017 में दिवाला प्रक्रिया में जा चुकी है। एनसीएलटी द्वारा आईडीबीआई बैंक के नेतृत्व वाले कंसोर्शियम के एक आवेदन को स्वीकार करने के बाद जेपी इंफ्राटेक दिवालिया घोषित हुई। इसके बाद एक लंबी समाधान प्रक्रिया चली और मुंबई के सुरक्षा समूह को जून 2021 में कंपनी को संभालने के लिए वित्तीय लेनदारों व घर खरीदारों की मंजूरी मिली।

IBC के नियमों के तहत वैसे तो कॉरपोरेट इन्सॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रॉसेस दिवाला प्रक्रिया शुरू होने की तारीख से 330 दिनों के अंदर पूरी हो जानी चाहिए। लेकिन फिर भी IBC के तहत मामले 2 साल से भी ज्यादा लंबे वक्त तक खिंच जाते हैं।