December 11, 2024

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आज अंगारकी चतुर्थी, जानें इसका महत्व और पूजा विधि

अंगारक चतुर्थी का संयोग तब बनता है जब मंगलवार के दिन चतुर्थी तिथि लगती है। इसे बहुत ही शुभ और फलदायी माना गया है। भारतीय परंपरा के अनुसार, चंद्र मास में दो बार चतुर्थी पड़ती है। भगवान गणेश का जन्म चतुर्थी तिथि को हुआ था इसलिए यह तिथि भगवान गणेश को समर्पित है। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहते हैं और पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। लेकिन यदि चतुर्थी तिथि मंगलवार को पड़ जाए तो उसे अंगारकी चतुर्थी कहते हैं। इस बार अंगारकी चतुर्थी वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को है यानी 19 अप्रैल 2022 को यह पर्व मनाया जाएगा। अंगारकी चतुर्थी को ही संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है।जानिए क्‍यों हुए थे गणेशजी के दो विवाह और रिद्धि सिद्धि कैसे बनीं उनकी पत्‍नीइस तरह पड़ा अंगारकी चतुर्थी नामअंगारकी चतुर्थी को विधिवत रूप से भगवान गणेश की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि अंगारकी चतुर्थी पर व्रत करने से साल भर की चतुर्थी तिथि का फल प्राप्त होता है और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। मान्यता है कि अंगारकी चतुर्थी के दिन गणेशजी का स्वरूप चार मस्तक वाला और चार भुजाओं वाला होता है। गणेशजी के इस स्वरूप को संकटमोचन गणेश कहा जाता है। मान्यता है कि अंगारक अर्थात मंगलदेव ने गणेशजी की कठिन तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर गणपति ने वरदान दिया था कि जिस दिन चतुर्थी तिथि मंगलवार को पड़ेगी, उसे अंगारकी गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाएगा।अंगारकी चतुर्थी का महत्वअंगारकी चतुर्थी के दिन गणेश पूजा के साथ हनुमानजी की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। साथ ही इस दिन सिंदूर से तिलक लगाने पर मंगल दोष दूर होता है और कुंडली में मंगल की स्थिति शुभ रहती है। मान्यता है कि अंगारकी चतुर्थी के दिन श्रद्धा भाव से व्रत रखने पर भगवान गणेश जातक के सभी कष्ट व विघ्न दूर करते हैं और सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। भगवान गणेश न सिर्फ सभी देवी-देवताओं में सबसे उच्च माने जाते हैं बल्कि यह बुद्धि, विवेक व बल के स्वामी भी हैं। सभी तकलीफों और दुखों को हरने के लिए विघ्नहर्ता गणेश का अंगारकी चतुर्थी व्रत काफी प्रचलित है।भगवान गणेश का मंत्रगजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।भगवान शिव ने गणेश के अलावा इनके भी काटे हैं सिर, भोगना पड़ा था यह परिणामअंगारकी चतुर्थी पूजा विधि और व्रत के नियमअंगारकी चतुर्थी व्रत करने वाले ब्रह्म मुहूर्त में स्नान, ध्यान आदि से निवृत होकर ‘ओम गं गणपतये नमः’ मंत्र का जप करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए। साथ ही लाल रंग के वस्त्र धारण करें, इससे मंगल ग्रह की स्थिति मजबूत होती है।अगर कोई व्रत नहीं भी कर रहा है तो गणेशजी की पूजा करनी चाहिए। व्रत करने वाले जातक को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके विधि विधान के साथ भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए।भगवान गणेश की पूजा में उनकी प्रिय चीजें जैसे दुर्वा, धूप-दीप और मोदक या मोतीचूर के लड्डू अर्पित करें। इसके बाद गणेश चालीसा, गणेश गणेश स्त्रोत या गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ कर सकते हैं। ध्यान रखें कि गणेशजी की पूजा में तुलसी का प्रयोग न करें।पूजा करने के पूरे दिन ओम गं गणपतये नमः मंत्र का जप करते रहें। साथ ही आप व्रत के नियमों का पालन करते हुए फलाहार भी कर सकते हैं।चांद निकलने से पहले भी भगवान गणेश की पूजा करें गणपति की प्रतिमा या तस्वीर पर धूप-दीप, फल, फूल के साथ नैवेद्य अर्पित करें। गणेशजी को चंदन का टीका लगाएं और लड्डुओं का भोग लगाएं।”,