April 20, 2024

Jagriti TV

न्यूज एवं एंटरटेनमेंट चैनल

Lifestyle Feet Foot Wear Life Boots Shooes

भारत में 90 फीसदी लोग पहनते हैं 1 हजार से कम कीमत के जूते

भारतीय उत्पादों के लिए वैश्विक बाजार में अधिक और पर्याप्त हिस्सेदारी हासिल करने के लिए देश में बनी वस्तुओं पर बीआईएस मानकों को लागू करना जरूरी है और देश के विकास कार्यों के लिए अधिक राजस्व अर्जित करने के लिए जीएसटी (GST) कर आधार का विस्तार करना और भी महत्वपूर्ण है. हालांकि, भारत में एक बड़ी आबादी और विविधता है, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि कौन से उत्पाद बीआईएस (BIS) मानकों को अपना सकते हैं और कौन से नहीं. इसके अलावा कौन से उत्पादों को जीएसटी टैक्स स्लैब की कौन सी कर श्रेणी में रखा जा सकता है, इस पर दोबारा से विचार होना चाहिए. इससे पीएम मोदी का आत्‍मनिर्भर भारत का द्रष्टिकोण भी पूरा होगा. ये बातें फुटवियर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एक सम्‍मेलन में कन्‍फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स की ओर से कही गईं.

कैट के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि फुटवियर (Footwear) उद्योग द्वारा उठाई गई चिंताएं वाजिब हैं और कैट इस मामले को वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने उठाएगी. खंडेलवाल ने कहा कि पहले की तरह ही एक हजार रुपये से कम कीमत के जूते (Shoes) पर 5% जीएसटी लगना चाहिए, और एक हजार रुपये से अधिक पर 12% के कर स्लैब के तहत रखा जाना चाहिए. इसी तरह, बीआईएस मानकों को भी उसी अनुपात में लागू किया जाना चाहिए. ऐसा इसलिए जरूरी है कि भारत विविधता का देश है जहां उपभोक्ता एक सामान्य व्यक्ति से लेकर सबसे संपन्न वर्ग तक हैं. हर प्रकार के सामान का खरीद व्यवहार उनके आर्थिक स्तर के अनुसार होता है और इसलिए उन्हें एक ही मापदंड से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. इसलिए सभी को समान शक्ति प्रदान करने और किसी भी कर चोरी की संभावना को कम करने या नियमों और नीतियों का पालन करने के लिए इसी प्रकार की कोई भी नीति या कर लगाया जाना चाहिए.
खंडेलवाल ने कहा कि भारत में 90% लोग 1000 रुपये से कम की कीमत के जूते का उपभोग कर रहे हैं और जिनमें से सबसे बड़ी आबादी 500 रुपये से कम के जूते का उपभोग करती है. देश में 1800 से अधिक प्रकार के जूते चप्पल निर्मित होते हैं जिनमें महिलाओं, पुरुषों, बच्चों, खिलाड़ियों और उपभोक्ताओं के विभिन्न अन्य क्षेत्रों के लिए एक साधारण स्लीपर से लेकर उच्च श्रेणी के जूते तक ख़रीदे जाते हैं. भारत में 50 रुपये से लेकर हजारों रुपये तक के जूते बनते हैं. फुटवियर व्यापार की इतनी बड़ी विविधता होने के कारण, क्या समान मानकों को लागू करना संभव है. निश्चित रूप से, यह संभव नहीं है और इसलिए संबंधित अधिकारियों को जीएसटी और बीआईएस दोनों मानकों को लागू करने पर गौर करना चाहिए.

बड़े उद्योगों के अलावा, बड़े पैमाने पर फुटवियर का निर्माण छोटे स्थानों, कुटीर और ग्राम इकाइयों और यहां तक ​​कि घर पर भी गरीब लोगों द्वारा किया जाता है और इसलिए बीआईएस मानकों और सभी प्रकार के फ़ुटवीयर पर 12% जीएसटी लगाने से देश का फ़ुटवियर व्यापार विपरीत रूप से प्रभावित होगा.