April 20, 2024

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क्यों बदल रहा है मॉनसून का मिजाज?

इस बार का मॉनसून तीन दिन पहले 29 मई को ही केरल पहुंच गया, मगर शुरुआती एक हफ्ते तक थमा ही रहा। फिर जुलाई शुरू होते ही आपदाओं का दौर शुरू हो गया। अमरनाथ गुफा के पास बादल फटे, वहीं उत्तराखंड के कई हिस्सों में तबाही दिखने लगी। पिछले साल भी मॉनसून के दौरान कई आपदाएं आई थीं। आखिर साल दर साल मॉनसून का मिजाज क्यों बदल रहा है?
​बदलता मिजाज
वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से मॉनसून का मिजाज बदला है। खास तौर पर बारिश के वितरण को लेकर व्यापक बदलाव दिख रहे हैं। इस बार जून में महाराष्ट्र में बारिश की कमी रही, जबकि असम में इतनी बारिश हुई कि वहां बाढ़ से तबाही मच गई। पिछले कुछ सालों से मॉनसून के हाल को देखते हुए सामान्य मॉनसून की परिभाषा बदलने की जरूरत महसूस हो रही है। देश की 40 प्रतिशत से ज्यादा बुआई मॉनसून की बारिश पर निर्भर है। मॉनसून में हो रहे बदलाव का असर किसानों और हमारी खाद्य सुरक्षा पर पड़ रहा है। भारत के लिए मॉनसून की काफी अहमियत है। इसका प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है।
असम-मेघालय में 121 साल में सबसे अधिक बारिश हुई, जबकि केरल में 121 साल में चौथी बार कम बारिश होने का रेकॉर्ड भी बना है। औसत बारिश की तुलना में जून 2022 में मॉनसून की आठ प्रतिशत वर्षा कम हुई, पर बारिश का वितरण काफी चौंकाने वाला रहा:

देश भर में 152.3 एमएम बारिश हुई।
अमस-मेघालय में इस बार 858.1 एमएम बारिश हुई।
केरल में 308.7 एमएम बारिश हुई। यह 1901 से अब तक चौथा सबसे कम बारिश का रेकॉर्ड है।
पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में सामान्य से 22 प्रतिशत अधिक बारिश हुई।
मध्य भारत में 30 प्रतिशत कम वर्षा दर्ज की गई।
​तरसती दिल्ली

मौसम विभाग के 548 में से 40 केंद्रों पर भारी से भारी वर्षा (204.5 मिमी से अधिक) दर्ज की गई, जबकि 97 केंद्रों में 115.6 मिमी से 204.4 मिमी और 411 में 64.5 मिमी से 115.6 मिमी वर्षा दर्ज हुई। राजधानी दिल्ली में मॉनसून के पहले ही दिन 30 जून को 116.6 एमएम बारिश दर्ज की गई। लेकिन इसके बाद से राजधानी बारिश के लिए तरसती रही। उमस और तेज गर्मी ने लोगों को बेहाल कर रखा है।

​कितनी अनिश्चितताएं

काउंसिल फॉर एनर्जी इन्वाइरनमेंट एंड वॉटर की एक रिपोर्ट बताती है कि मॉनसून के लिहाज से भारत के 75 प्रतिशत जिले हॉटस्पॉट हैं, और इनमें से 40 प्रतिशत में मॉनसून का रुख बदलता रहता है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार चक्रवात, बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं के कारण भारत को 7 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक का नुकसान हुआ है। भारत में इस समय कई राज्य मॉनसून की अनिश्चितताओं से घिरे हुए हैं। 463 जिले मॉनसून से जुड़े जोखिम का सामना कर रहे हैं।

​कृषि क्षेत्र से पलायन

बारिश के पैटर्न में हो रहे बदलाव से कृषि क्षेत्र की हालत खराब हो रही है। कृषि से जुड़े लोग पलायन कर रहे हैं। इसके समाधान के लिए हमें अपनी अनुकूलन क्षमता को बढ़ाना होगा। साथ ही नई फसलों का चयन करना होगा, जो बदलते मौसम में भी पैदा की जा सकें। बारिश की अवधि में होने वाले बदलावों के हिसाब से फसली सत्र को आगे-पीछे खिसकाया जाना चाहिए। वैज्ञानिकों के अनुसार मॉनसून में बदलाव समुद्र की सतह के तापमान में होने वाले बदलावों की वजह से होता है।

​मॉनसून के पैटर्न में बदलाव

वैज्ञानिकों के अनुसार 1950 के दशक के बाद से दक्षिण एशिया में मॉनसून के पैटर्न में बदलाव आए हैं। सबसे महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि अब मॉनसून के मौसम में एक लंबे शुष्क समय के बाद अचानक भारी बारिश का दौर आता है। गौर करने वाली बात यह है कि तापमान में एक डिग्री की वृद्धि से बारिश की मात्रा सात प्रतिशत तक बढ़ती है। मॉनसून के दिनों में यह 10 प्रतिशत तक जाती है। यही वजह है कि दक्षिण एशिया में अत्यधिक बारिश की घटनाओं के बढ़ने का अनुमान है।