सिद्धार्थ शुक्ला से लेकर शेन वॉर्न तक… हेल्दी बॉडी, फिट लाइफस्टाइल, फिर भी कम उम्र में मौत, रहस्यमय सिंड्रोम ले रहा जान!पिछले कुछ महीनों में युवाओं और कम उम्र के लोगों की अचानक हुई मौतों ने सभी के मन में एक खौफ भर दिया है। जिन सेलिब्रिटीज को हम रोज देखते थे, उनके दीवाने थे और सोशल मीडिया से लेकर रोजमर्जा के जीवन में उन्हें शामिल करते थे उनके अचानक चले जाने से फैंस को गहरा सदमा लगा है। हैरान करने वाली बात यह है कि कम उम्र के ज्यादातर लोगों में मौत का कारण हार्ट अटैक बन रहा है जो चिंताजनक है। अब 40 साल से कम उम्र के लोगों को अपने दिल की जांच करवाने के लिए कहा जा रहा है क्योंकि उन्हें संभावित रूप से सडन एडल्ट डेथ सिंड्रोम (SADS) का खतरा हो सकता है।डेलीमेली की खबर के अनुसार SADS नामक सिंड्रोम हर तरह के लोगों के लिए घातक है, फिर भले ही वे फिट और हेल्दी लाइफस्टाइल को फॉलो करते हों। द रॉयल ऑस्ट्रेलियन कॉलेज ऑफ़ जनरल प्रैक्टिशनर्स ने कहा कि कम उम्र के लोगों की अचानक होने वाली मौत के लिए SADS शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें ज्यादातर 40 साल से कम उम्र के लोग शामिल होते हैं। इस शब्द का इस्तेमाल तब किया जाता है जब पोस्ट-मॉर्टम में मौत का कोई स्पष्ट कारण निकलकर नहीं आ पाता।31 साल की बेटी को खोने का दर्द
पिछले साल 31 साल की कैथरीन कीन की मौत तब हो गई जब वह सो रही थीं। वह ड्यूबलिन में अपने दो दोस्तों के साथ रहती थीं। उनकी मां मार्गेरिटा क्यूमिंस ने आइरिश मिरर को बताया कि वे सभी वर्क फ्रॉम होम करते थे इसलिए सुबह जब कैथरीन ब्रेकफ्रस्ट के लिए नहीं आई तो किसी ने ध्यान नहीं दिया। सुबह 11:20 बजे उन्होंने कैथरीन को मैसेज किया और जब उसने जवाब नहीं दिया तो दोस्तों ने उसका कमरा चेक किया। तब पता चला कि उसकी मौत हो चुकी है। उसकी दोस्त को रात 3:56 बजे उसके कमरे से एक आवाज सुनाई थी। अब उसका मानना है कि तभी उसकी मौत हो गई थी।
रोज जिम और वॉक के बाद भी हुई मौत
क्यूमिंस ने कहा कि उनकी बेटी जिम जाती थी और हर रोज 10,000 कदम वॉक करती थी। ‘मैं बस यह सोचकर राहत महसूस करती हूं कि उसकी मौत तब हुई जब वह सो रही थी और उसे कोई दर्द महसूस नहीं हुआ, मैं इसके लिए बेहद आभारी हूं। मैं बच्चों के कार चलाने को लेकर हमेशा चिंतित रहती थी लेकिन कभी इसका अंदाजा नहीं था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे अपने जीवन में अपनी बेटी की मौत देखनी पड़ेगी।’
सिर्फ 10 फीसदी मरीज ही पहुंच पाते हैं अस्पताल
हृदय रोग विशेषज्ञ और शोधकर्ता डॉ एलिजाबेथ पैराट्ज़ का कहना है कि SADS की 90 प्रतिशत घटनाएं अस्पताल के बाहर होती हैं। वास्तव में एम्बुलेंस स्टाफ और फोरेंसिक टीम ही इस तरह के मरीजों के बड़े हिस्से की देखभाल करती है। उन्होंने कहा, ‘मेरे हिसाब से डॉक्टर भी इसे कम आंकते हैं। सिर्फ 10 प्रतिशत लोग ही जीवित बच पाते हैं और अस्पताल पहुंचते हैं। पीड़ितों के परिवार और दोस्तों के लिए SADS एक ‘बेहद तकलीफदेह सच्चाई’ है क्योंकि इसमें ‘मर्ज का पता ही नहीं चल पाता’ है।
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