April 18, 2024

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किष्किंधा या अंजनेरी… कहां जन्मे थे भगवान हनुमान, आज धर्म संसद में होगा फैसला

भगवान हनुमान का जन्मस्थान कहां था? इसे लेकर अलग-अलग मत हो सकते हैं, लेकिन अब इस पर विवाद हो गया है। इसी को सुलझाने के लिए नासिक में आज धर्म संसद बुलाई गई है। श्री मंडलाचार्य पीठाधीश्वर महंत स्वामी अनिकेत शास्त्री देशपांडे ने इसका आयोजन किया है। स्वामी अनिकेत का कहना है कि धर्म संसद में देश भर के संत भगवान हनुमान की जन्मभूमि को लेकर अपने विचार रखेंगे। इस धर्म संसद में हुए निर्णय को सभी लोगों को मानना होगा। दरअसल कर्नाटक के किष्किंधा के महंत गोविंद दास ने दावा किया था कि किष्किंधा ही भगवान हनुमान का जन्मस्थान है। उन्होंने इस पर बहस की चुनौती भी दी थी।वाल्मीकि रामायण का हवाला देते हुए उन्होंने उस मान्यता गलत ठहराया था, जिसके तहत माना जाता है कि भगवान हनुमान का जन्म महाराष्ट्र के अंजनेरी में हुआ था। महंत गोविंद दास रथ लेकर रविवार को त्र्यंबकेश्वर पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि रामायण में महर्षि वाल्मीकि ने कहीं नहीं लिखा है कि हनुमान जी का जन्म अंजनेरी में हुआ था। जन्म स्थान हमेशा एक ही रहता है और कहीं भी यह नहीं लिखा है कि भगवान हनुमान का जन्म नासिक के अंजनेरी में हुआ था। नासिक पुरोहित संघ के अध्यक्ष सतीश शुक्ला और वैष्णव एवं शैव अखाड़ों ने उनके इस दावे को चुनौती दी है। इन लोगों का कहना है कि नासिक का अंजनेरी ही हनुमान जी का जन्मस्थान है।

फिलहाल इस विवाद को लेकर किसी अदालत में या सरकारी स्तर पर कोई दावा नहीं किया गया है। हालांकि नासिक पुलिस ने आयोजकों को कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए नोटिस जारी किया है। बता दें कि अंजनेरी, नासिक-त्र्यंबकेश्वर के पहाड़ों में बने किलों में से एक है। जिसे भगवान हनुमान का जन्मस्थान माना जाता है। अंजनेरी नासिक से त्र्यंबक रोड पर 20 किमी दूर है। इसका नाम हनुमान की मां अंजनी के नाम पर रखा गया है। अंजनेरी पहाड़ी पर हनुमान जी के साथ अंजनी माता का मंदिर है। कहा जाता है कि इसी पर्वत पर हनुमानजी का जन्म हुआ था।स्वामी अनिकेत शास्त्री ने हनुमान जी के जन्मस्थान पर दावों को लेकर कहा, ‘देश भर में 9 स्थानों पर भगवान हनुमान का जन्मस्थान होने का दावा किया गया है। हालांकि किसी ने भी नासिक के दावे को खारिज नहीं किया गया है। फिलहाल इस पर चर्चा के लिए धर्म संसद का आयोजन किया गया है। यह आयोजन नासिक रोड स्थित पंचायतन सिद्धपीठम में किया गया है।’ उन्होंने कहा कि इस धर्म संसद में साधुओं के फैसले को माना जाएगा। इसके बाद भी कोई विवाद होगा तो फिर श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य के समक्ष इस विवाद को रखा जाएगा और उनका फैसला मानना होगा।