भारत के उपराष्ट्रपति (Vice President) के चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग ने बीते मंगलवार को नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू (Vice President M Venkaiah Naidu) का कार्यकाल 10 अगस्त को समाप्त हो रहा है. चुनाव 6 अगस्त के लिए निर्धारित है, और 19 जुलाई नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि है. उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए और विपक्ष ने अभी तक अपने उम्मीदवार के नामों की घोषणा नहीं की है.
देश के अगले उपराष्ट्रपति के लिए जल्द ही सियासी दल अपने-अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर देंगे. लेकिन इससे पहले आइए हम आपको बताते हैं कि देश के उपराष्ट्रपति पद का चुनाव कैसे होता है, कौन उसमें वोट डाल सकता है. वोटों की गिनती कैसे की जाती है. जानिए सब कुछ यहां.
उपराष्ट्रपति का कार्यालय
संविधान के अनुच्छेद 63 में कहा गया है कि “भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा”. अनुच्छेद 64 के तहत, उपराष्ट्रपति “राज्यों की परिषद का पदेन अध्यक्ष होगा” वही संविधान के अनुच्छेद 65 में कहा गया है कि “राष्ट्रपति की मृत्यु, इस्तीफे या हटाने की स्थिति में उपराष्ट्रपति उस तारीख तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा जब तक कि नए राष्ट्रपति की नियुक्ति नहीं की जाती.
कितने दिनों में होना चाहिए चुनाव
संविधान के मुताबिक, उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा हो जाने के 60 दिनों के भीतर चुनाव कराना ज़रूरी होता है. इसके लिए चुनाव आयोग एक निर्वाचन अधिकारी नियुक्त करता है जो किसी एक सदन का सेक्रेटरी जनरल होता है. निर्वाचन अधिकारी चुनाव को लेकर पब्लिक नोट जारी करता है और उम्मीदवारों से नामांकन मंगवाता है.
उपराष्ट्रपति का चुनाव
अनुच्छेद 66 उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया को निर्धारित करता है. उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के जरिए होता है. संसद के दोनों सदनों राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य वोटिंग में हिस्सा लेते हैं. हर सदस्य केवल एक वोट ही डाल सकता है.
आपको बता दें कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में दोनों सदनों के लिए मनोनीत सांसद भी वोटिंग कर सकते हैं. इस प्रकार से राज्यसभा चुने हुए सदस्य (233) और मनोनित सदस्य (12) वहीं लोकसभा के चुने हुए सदस्य (543) और मनोनीत सदस्य (2) दोनों सदनों के कुल 790 निर्वाचक हिस्सा लेते हैं.
क्या होती है अनुपातिक पद्धति
उपराष्ट्रपति के लिए चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधि पद्धति के जरिए किया जाता है. इसके तहत वोटिंग के लिए एक खास प्रकार की प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है. जिसे सिंगल ट्रांसफ़रेबल वोट सिस्टम कहते हैं. जिसके तहत मतदाता को वोट तो एक ही देना होता है लेकिन उसे अपनी पसंद के आधार पर प्राथमिकता तय करनी होती है. मतदाता वोटिंग के दौरान बैलेट पेपर पर मौजूद उम्मीदवारों की लिस्ट में अपनी पहली पसंद को 1, दूसरी पसंद को 2 और इसी क्रम से आगे की प्राथमिकता देता है.
ऐसे होती है वोटों की काउंटिंग
उपराष्ट्रपति पद के लिए वोटिंग की काउंटिंग में सबसे पहले ये देखा जाता है कि सभी उम्मीदवारों को पहली प्राथमिकता वाले कितने वोट मिले हैं. उसके बाद सभी उम्मीदवारों को मिले पहली प्राथमिकता वाले वोटों को जोड़ा जाता है. इसके बाद कुल संख्या को 2 से विभाजित किया जाता है और भागफल में 1 जोड़ दिया जाता है. इसके बाद जो संख्या मिलती है उसे वह कोटा माना जाता है, जो किसी उम्मीदवार को काउंटिंग में बने रहने के लिए आवश्यक है.
अगर कोई उम्मीदवार पहली ही काउंटिंग में जीत के लिए जरूरी कोटे के बराबर या उससे अधिक वोट हासिल कर लेता है तो उस उम्मीदवार को जीता हुआ घोषित कर दिया जाता है. अगर रिजल्ट नहीं निकल पाता तो इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है. फिर सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवारों को चुनाव की रेस से बाहर कर दिया जाता है.
लेकिन उसे पहली प्राथमिकता देने वाले वोटों में यह देखा जाता है कि वोटिंग में दूसरी प्राथमिकता किसे दी गई है. इसके बाद दूसरी प्राथमिकता वाले इन वोटों को दूसरे उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता है. इन वोटों के ट्रांसफर करने के बाद अगर किसी उम्मीदवार के वोट कोटे वाली संख्या के बराबर या उससे अधिक हो जाते हैं तो उस उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया जाता है. बता दें ये प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक किसी एक उम्मीदवार को कोटे के बराबर वोट हासिल ना हो जाए.
विवाद होने की स्थिति में
संविधान का अनुच्छेद 71 “राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित या उससे जुड़े मामलों” से संबंधित है. इसमें कहा गया है कि “राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव के संबंध में या उसके संबंध में उत्पन्न होने वाले सभी संदेहों और विवादों की जांच और निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाएगा जिसका निर्णय अंतिम होगा.”
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