April 20, 2024

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अहीर रेजिमेंट फिर से बनाने की क्यों हो रही है मांग?

भारतीय सेना में अहीर रेजिमेंट फिर से बनाने की मांग हो रही है। पहले कुमाऊं रेजिमेंट में हरियाणा के अहीर सैनिक हुआ करते थे और इसलिए उसे अहीर रेजिमेंट भी कहा जाता था लेकिन अब समुदाय के लिए एक पूर्ण इन्फैंट्री रेजिमेंट की मांग हो रही है। दिल्ली-गुरुग्राम एक्सप्रेसवे पर खेड़की दौला टोल प्लाजा पर 4 फरवरी से प्रदर्शनकारी धरना दे रहे हैं। ‘यूनाइटेड अहीर रेजिमेंट मोर्चा’ के बैनर तले इस प्रदर्शन के चलते बुधवार को हाईवे पर 6 किमी तक यातायात प्रभावित हुआ। खास बात यह है कि अहीर समुदाय के लोगों को राजनीतिक समर्थन भी मिल रहा है। केंद्रीय मंत्री उन्हें अपना समर्थन दे चुके हैं और राज्यसभा में कांग्रेस सांसद ने सेना में अहीर रेजिमेंट की स्थापना का मुद्दा उठाया। ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग का आधार क्या है?
पहले यह समझिए कि अहीर रेजिमेंट में ‘अहीर’ शब्द कहां से आया। दरअसल, हरियाणा के दक्षिणी जिले रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और गुरुग्राम के पूरे क्षेत्र को अहीरवाल कहा जाता है। इसका संबंध राजा राव तुलाराम से है जो 1857 की क्रांति के अहीर हीरो थे। वह रेवाड़ी स्थित रामपुरा रियासत के राजा थे। अहीरवाल की भूमि पर अंग्रेजों से मुकाबला करने वाले राजा राव को क्रांति का महानायक कहा जाता है। इस क्षेत्र में काफी समय से अहीर रेजिमेंट की मांग हो रही है। जिन-जिन राज्यों में अहीर आबादी ज्यादा है, वहां यह मांग उठती रहती है।
रेजांग ला की वो लड़ाई
1962 में रेजांग ला की जंग में हरियाणा के जांबाज अहीर सैनिकों की बहादुरी की खबर मिलने के बाद अहीर सैनिक पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए। आज भी उन 117 अहीरों के शौर्य और बलिदान को याद किया जाता है। उस समय कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन की C कंपनी के ज्यादातर सैनिक चीनी सैनिकों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे लेकिन दुश्मन को आगे नहीं बढ़ने दिया। वे तमाम कोशिशों के बाद भी रेजांगला चौकी पर कब्जा नहीं कर पाए और चुशूल में आगे बढ़ने का उनका सपना चकनाचूर हो गया।
समुदाय के लोग काफी समय से मांग कर रहे हैं कि कुमाऊं रेजिमेंट की दो बटालियन और अन्य रेजिमेंटों में एक निश्चित प्रतिशत ही नहीं, अहीर के नाम पर एक पूरी रेजिमेंट होनी चाहिए। साल 2012 में 1962 की लड़ाई के 50 साल पूरे होने पर यह मांग जोर पकड़ी, जब अहीर जवानों की गौरवगाथा बार-बार दोहराई गई। अब 60 साल पूरे होने पर यह मांग संसद तक पहुंच चुकी है। हाल के वर्षों में लगभग सभी राजनीतिक दल इस मांग का समर्थन करते दिखे हैं।