November 19, 2024

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World Earth Day: नहीं जागे तो…सदी के अंत तक हिमालय के ग्‍लेशियर्स का करीब 64% हिस्‍सा पिघल जाएगा

World Earth Day: आज विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जा रहा है। ये हम सब जानते हैं कि मानवीय क्रियाकलापों की वजह से ग्लोबल वार्मिंग किस हद तक बढ़ गई है। कई वैश्विक रिपोर्ट्स में बढ़ते तापमान पर चिंता और इसके दुष्परिणामों के बारे में बताया गाय है। ओशन एंड आइस रिपोर्ट के अनुसार इस सदी के अंत तक एशिया के ऊंचाई वाले पर्वतीय इलाकों में स्थित ग्‍लेशियर्स का करीब 64 फीसदी हिस्‍सा पिघल जाएगा। हालांकि यह भी बताया गया कि यदि वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जा सका तो यह नुकसान करीब 36 प्रतिशत तक ही सीमित रहेगा। जो एशिया महाद्वीप के लिये जल सुरक्षा के लिहाज से बड़ा फर्क पैदा करेगा।

आईपीसीसी की महासागर और क्रायोस्‍फेयर क्षेत्रों पर ध्‍यान केन्द्रित करते हुए ओशन एंड आइस नामक रिपोर्ट में इन चिंताओं को जाहिर किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक एशिया जलवायु परिवर्तन के कई बड़े प्रभावों के अभूतपूर्व दबावों का सामना करेगा। इनमें जल सुरक्षा में कमी, खाद्य उत्‍पादन और खाद्य सुरक्षा पर मंडराते जोखिम, तटीय और सामुद्रिक तंत्रों पर बढ़ता दबाव और बाढ़ तथा नदी के प्रवाह पर असर का कारण बनने वाली चरम मौसमी स्थितियों की तीव्रता में वृद्धि शामिल हैं। इनसे खेती का मिजाज अप्रत्‍याशित हो जाएगा।

भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
हिमालय का दो तिहाई हिस्सा पिघल जाएगा

रिपोर्ट के अनुसार हिन्‍दुकुश हिमालय क्षेत्र में स्थित ग्‍लेशियर इस इलाके के रहने वाले 24 करोड़ लोगों को पानी की आपूर्ति करने में बेहद महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें 8 करोड़ 60 लाख भारतीय भी शामिल हैं। मोटे तौर पर देखें तो यह आबादी भारत के पांच सबसे बड़े शहरों की जनसंख्‍या के बराबर है। हिमालय के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित लाहौल-स्‍पीति जैसे ग्‍लेशियर 21वीं सदी के शुरू से ही पिघल रहे हैं और अगर इनमें कमी नहीं आयी तो हिन्‍दु कुश हिमालय के ग्‍लेशियर्स का दो तिहाई हिस्‍सा पिघल जाएगा।

ठंडे साइबेरिया में बढ़ रही है गर्मी, वजह मनुष्य की क्लाइमेट से छेड़छाड़: वैज्ञानिक
दुनिया के कुछ सबसे बेहतरीन क्लाइमेट वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किए गए एक एट्रिब्यूशन (विश्लेषण) के अनुसार, साइबेरिया में जनवरी 2020 से जून 2020 के बीच पड़ने वाली जबर्दस्त गर्मी की वजह जलवायु परिवर्तन रही। इस जलवायु परिवर्तन के लिए इंसानी गतिविधियां ज़िम्मेदार रही हैं।

पी.पी. शिर्शोव इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओसियनोलॉजी (समुद्र विज्ञान), और रूसी विज्ञान अकादमी सहित अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों और मौसम विज्ञान सेवाओं के शोधकर्ताओं ने यह भी पाया अगर मानवों ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कर जलवायु को प्रभावित नहीं किया होता तो वहां का औसत तापमान 2°C से न बढ़ा होता।

पेरिस समझौते की कसौटी पर खरा नहीं है दुनिया का कोई भी मुल्क
पेरिस समझौते के 6 साल बाद भी दुनिया का कोई भी मुल्क इसके लक्ष्यों को पूरा करने की कसौटी पर खरा नहीं है। हालाँकि विश्लेषण किए गए 57 देशों में से आधे से अधिक देशों में उत्सर्जन कम हो रहा है। क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस इंडेक्स 2021 के अनुसार इसकी टॉप टेन सूची में भारत सहित तीन विकासशील देश शामिल पाए गये हैं। इनमें मोरक्को 7वें, चिली 9वें और भारत 10वें स्थान पर है।

साथ ही लगातार दूसरी बार फिर, संयुक्त राज्य अमेरिका रैंकिंग में सबसे नीचे रहा। और सऊदी अरब उसके ठीक उपर रहा। यानी यह दोनों देश इस रैंकिंग के सबसे निचले पायदान पर रहे। जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस इंडेक्स) (CCPI) 2021, जलवायु कार्रवाई पर यूरोपीय संघ (EU) द्वारा प्रगति की एक मिश्रित तस्वीर पेश करता है। लगभग पूरी तरह से बेहतर जलवायु नीति की बदौलत यूरोपीय संघ ने समग्र रैंकिंग में पिछले साल 22वें स्थान से इस वर्ष 16वें स्थान पर पहुंच कर सुधार दिखाया है।

पृथ्वी की सेहत के लिए उदासीनता नहीं, जागरुकता जरूरी
हमारी धरती पर बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ही हमें विश्व पृथ्वी दिवस मनाना पड़ता है, ताकि इस बहाने हम हमारी ग्लोब की सेहत के बारे में जागरूक हो सकें।

जलवायु परिवर्तन ने हमारी पृथ्वी पर गहरा असर डाला है। पिछले 200 सालों में इंसान ने बेहद तरक्की की है, मगर पर्यावरण के प्रति हमेशा उदासीनता ही दिखाई है। यही वजह कि आज रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ रही है। बेहिसाब बारिश हो रही है। दुनियाभर में 22 अप्रैल को ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ मनाया जाता है। इसके पीछे उद्देश्य यही है कि लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हों और पृथ्वी के महत्व को समझें। गूगल भी आज अपने डूडल के जरिये जलवायू परिवर्तन को दिखाते हुए लोगों को जागरूक कर रहा है। जलवायु परिवर्तन यूं तो प्राकृतिक माध्यम से भी हो सकता है- जैसे सौर चक्र में बदलाव के माध्यम से, लेकिन 1800 के बाद मुख्यतौर पर हम इंसान ही जलवायु परिवर्तन की वजह बने हैं।

कब हुई इस दिन को मनाने की शुरुआत?
22 अप्रैल, 1970 को पहली बार ‘विश्‍व पृथ्वी दिवस’ मनाया गया था। अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन ने इसे मनाने की शुरुआत की थी। पृथ्‍वी जो कि हमारा पोषण करती है, मगर पर्यावरण असंतुलन की वजह से इसकी स्थिति दयनीय होती जा रही है। ऐसे में लोगों का कर्तव्य है कि वे पृथ्वी के प्रति अपने कर्तव्यों को समझें और इसे बेहतर बनाने में योगदान दें। इसी उद्देश्‍य के साथ हर साल विश्व पृथ्वी दिवस का आयोजन करके लोगों को जागरूक किया जाता है।

क्या होता है इस दिन
विश्व पृथ्वी दिवस के दिन पेड़ लगाकर, सड़क किनारे से कचरा उठाकर, लोगों को टिकाऊ जीवन जीने के तरीके अपनाने के लिए प्रेरित करने जैसे विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा बच्चों में जागरूकता फैलाने के लिए इस दिन स्कूलों और विभिन्न समाजिक संस्थाओं द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।