रूस-यूक्रेन युद्ध कब खत्म होगा? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है। सोमवार को यूक्रेन पर रूस के हमले को 19 दिन हो गए हैं। यह लड़ाई और लंबी खिंची तो पूरी दुनिया के लिए परेशानी खड़ी होगी। भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा। इसकी आंच पहले से ही पड़ने लगी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड (कच्चा तेल) के दाम हिलोरे मार रहे हैं। इससे भारत में ऑयल मार्केटिंग कंपनियों पर पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने का दबाव है। ऐसा होने पर महंगाई बढ़ेगी। ग्लोबल इकनॉमी के लिए इस जंग ने बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। यह युद्ध दुनिया को मंदी के दलदल में धकेल सकता है। रूस-यूक्रेन को यूरोप का ‘ब्रेड बास्केट’ कहते हैं। युद्ध के लंबा खिंचने पर यूरोप में खाने-पीने की सप्लाई पर असर पड़ेगा। यहां खाने-पीने की चीजें महंगी होंगी। दुनिया अभी कोरोना की मार से ही नहीं उबरी है। अब यह जंग उसके लिए नई चुनौतियां पैदा कर रही है।
रूस-यूक्रेन में जंग छिड़ने के बाद से यूक्रेन से सप्लाई बाधित हुई है। वहीं, रूस पर तरह-तरह के प्रतिबंधों ने एनर्जी से लेकर टेलीकॉम सेक्टर को प्रभावित किया है। इस तरह रूस पर लगे बैन का असर उन देशों पर भी पड़ेगा जो इससे अब तक तमाम तरह की चीजें खरीदते रहे हैं।
झेलनी पड़ेगी महंगे तेल और गैस की मार
रूस तेल और गैस के टॉप तीन आपूर्तिकर्ता देशों में से एक है। जंग छिड़ने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें चढ़ी हैं। ये 110 डॉलर प्रति बैरल के आसपास बनी हुई हैं। एक समय कीमतें 139 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं। इसके बाद अमेरिका, वेनेजुएला और अन्य देशों ने सप्लाई बढ़ाई थी। इसने क्रूड के दामों पर अंकुश लगाने का काम किया था।
अमेरिका, ब्रिटेन और ज्यादातर यूरोप ने रूस के तेल की खरीद पर बैन लगाया है या फिर उससे तेल नहीं खरीदने का फैसला किया है। रूस रोजाना 45-50 लाख बैरल क्रूड सप्लाई करता है। 2020 में रूस की दुनिया के कुल तेल निर्यात में 12 फीसदी हिस्सेदारी थी। वहीं, नैचुरल गैस सप्लाई में उसकी हिस्सेदारी करीब 16 फीसदी थी।
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