नेफ्रोटिक सिंड्रोम किसी भी उम्र में हो सकता है और किसी को भी हो सकता है. लेकिन मुख्य रूप से यह समस्या टीनऐज (Teenage) में और लड़कों (Boys) में अधिक देखने को मिलती है. इस बीमारी में किडनी (Kidney) अधिक मात्रा में प्रोटीन लीक (Protein leakage in urine) करने लगती है, जिससे यूरिन में के रास्ते यह प्रोटीन शरीर से बाहर जाने लगता है और बच्चा कमजोर होने लगता है. यहां जानें नेफ्रोटिक सिंड्रोम (Nephrotic Syndrome) के लक्षण और इसके खतरे.
क्या हैं नेफ्रोटिक सिंड्रोम के लक्षण?
सूजन होना (Swelling): नेफ्रोटिक सिंड्रोम की सबसे पहली पहचान के रूप में आप बच्चे की आंखों और चेहरे पर सूजन देखते हैं. बच्चे की आंखें सूजी रहती हैं. आंखों के अलावा बच्चों के घुटनों के नीचे के पैरों पर सूजन की समस्या होती है.
यूरिन में बदलाव (Urine Changes): नेफ्रोटिक सिंड्रोम होने पर यूरिन के रास्ते प्रोटीन अधिक मात्रा में निकलता है तो इस कारण यूरिन बहुत झागदार हो जाता है.
साथ ही बच्चे को पहले की तुलना में यूरिन काफी कम मात्रा में होता है.
यूरिन के साथ कुछ-कुछ ब्लड क्लोट्स भी आ सकते हैं.
नेफ्रोटिक सिंड्रोम के खतरे क्या हैं?
नेफ्रोटिक सिंड्रोम में बच्चे को जो समस्याएं हो रही होती हैं वो तो बनी ही रहती हैं, इनके अलावा कई और समस्याएं होने का खतरा लगातार बना रहता है. इसलिए इस सिंड्रोम का समय पर इलाज कराना बहुत जरूरी होता है.
ब्लड क्लोटिंग की समस्या (Blood Clots): यूं तो आमतौर पर ब्लड क्लोटिंग की समस्या बड़ी उम्र में ही होती है. लेकिन जिन बच्चों को नेफ्रोटिक सिंड्रोम होता है, उनमें भी क्लोंटिंग की समस्या हो सकती है. क्योंकि ब्लड क्लोटिंग की समस्या को रोकने के लिए रक्त में प्रोटीन की एक उचित मात्रा जरूरी होती है लेकिन इस सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों में प्रोटीन शरीर में रुक नहीं पाता है. इसलिए इनका खून गाढ़ा हो जाता है और क्लोटिंग का खतरा भी बढ़ जाता है.
हाई बीपी (High BP): शरीर में प्रोटीन की कमी कई तरह की रासायनिक क्रियाओं को प्रभावित करती है. इस कारण शरीर में अतिरिक्त फ्लूइड भी बनने लगता है, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है और बच्चे को हाई बीपी (High blood pressure) की समस्या हो सकती है.
कई तरह के इंफेक्शन (Infection): हमारे शरीर में इंफेक्शन को रोकने का काम ऐंटीबॉडीज करती हैं, जो खास तरह के प्रोटीन से बनी होती हैं. लेकिन नेफ्रोटिक सिंड्रोम के दौरान शरीर में ऐंटीबॉडीज ना के बराबर हो जाती हैं और प्रोटीन का स्तर भी घटता रहता है. इस कारण बहुत जल्दी से कोई भी इंफेक्शन इन बच्चों को लग जाता है. ऐसे में बच्चों की बहुत देखभाल की जरूरत होती है.
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