समान नागरिक संहिता ( Uniform Civil Code) की चर्चा अब हकीकत की जमीन पर उतरने लगी है। इस मामले में केंद्र सरकार के लिए आधी जंग जीतना बहुत आसान है। भाजपा शासित राज्य गोवा अभी एक मात्र राज्य है, जहां समान नागरिक संहिता ( Uniform Civil Code) लागू है। अब उत्तराखंड ( Uttrakhand) ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है और समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का मसौदा तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) की सेवानिवृत न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति गठित की है। मध्य प्रदेश, कर्नाटक आदि भाजपा शासित राज्य इसे लागू करने के संकेत दे रहे हैं।इस समय 18 राज्यों में भाजपा की अपने दम पर या सहयोगी के तौर पर सरकार है। अगर भाजपा अपने सहयोगियों को मनाने में सफल हो गई और इन राज्यों ने इसे लागू करना शुरू कर दिया तो देश के आधे से ज्यादा हिस्से में सभी नागरिकों के लिए समान कानून की संहिता ( Uniform Civil Code) लागू हो जाएगी। संविधान के नीति निदेशक तत्व का अनुच्छेद 44 ( Article 44) कहता है कि राज्य पूरे भारत वर्ष में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता ( Uniform Civil Code) प्राप्त करने का प्रयास करेगा। समान नागरिक संहिता ( Uniform Civil Code) का मुद्दा कोई नया नहीं है।सुप्रीम कोर्ट भी कई बार समान नागरिक संहिता ( Uniform Civil Code) की बात चुका है। अभी भी सुप्रीमकोर्ट ( Supreme Court) और हाईकोर्ट ( High Court)में यह मुद्दा लंबित है। भाजपा के एजेंडे में तो यह बहुत पहले से शामिल है। इस समय केंद्र सरकार के स्तर पर भी इसे लेकर गहमागहमी तेज हो गई है। समान नागरिक संहिता ( Uniform Civil Code) का मतलब है कि देश के सभी नागरिक चाहें वे किसी भी धर्म के हों, उनके लिए विवाह, तलाक, भरण पोषण, विरासत व उत्तराधिकार, संरक्षक, गोद लेना आदि के बारे में समान कानून होगा।
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