संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने बुधवार को कहा कि संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक संकट ने लोगों की आजीविका को तबाह कर दिया है, जिससे पिछले साल भूख का सामना करने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 193 मिलियन हो गई. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यूक्रेन में रूस के युद्ध से अकाल पड़ सकता है, एफएओ ने एक वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि 2021 में लगभग 40 मिलियन और लोगों को ‘तीव्र खाद्य असुरक्षा’ में धकेल दिया गया.
भुखमरी की समस्या का सामना कर रहे 53 देशों में, सबसे अधिक प्रभावित कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, इथियोपिया, यमन और अफगानिस्तान हैं- जहां 2021 में तालिबान के अधिग्रहण के बाद देश के वित्तीय संकट में फंसने से लाखों लोग भूखमरी का सामना करना पड़ रहा है.
क्या है ‘तीव्र खाद्य असुरक्षा’
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक ‘तीव्र खाद्य असुरक्षा’ की परिभाषा है कि जब किसी व्यक्ति की पर्याप्त भोजन का उपभोग करने की क्षमता उसके जीवन या आजीविका को तत्काल खतरे में डाल देती है. एफएओ ने कहा, “यह भूख है जो अकाल में जाने और व्यापक मौत का कारण बन सकती है.”
2016 में एफएओ, विश्व खाद्य कार्यक्रम और यूरोपीय संघ द्वारा पहली रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद से यह संख्या लगातार बढ़ी है. एफएओ ने कहा कि 2021 में वृद्धि “संघर्ष, मौसम की चरम सीमा और आर्थिक झटके के जहरीले ट्रिपल संयोजन से प्रेरित है, जिससे 53 देशों के लोग प्रभावित हैं.”
हालांकि रिपोर्ट में यूक्रेन में संघर्ष को ध्यान में नहीं रखा गया है लेकिन एफएओ ने कहा कि युद्ध “खाद्य संकट वाले देशों और अकाल के कगार पर खड़े लोगों पर सबसे विनाशकारी प्रभाव डालता है”.
रूस और यूक्रेन आवश्यक कृषि उत्पादों के प्रमुख निर्यातक हैं, जिनमें गेहूं और सूरजमुखी के तेल से लेकर उर्वरक तक शामिल हैं, और एफएओ पहले कह चुका है कि संघर्ष ने मार्च में विश्व खाद्य कीमतों को सर्वकालिक उच्च स्तर पहुंचा दिया. एफएओ ने कहा, “युद्ध ने पहले ही वैश्विक खाद्य प्रणालियों की परस्पर प्रकृति और नाजुकता को उजागर कर दिया है.”
एजेंसी ने उल्लेख किया कि प्रमुख खाद्य संकट से जूझ रहे कई देशों ने पिछले साल रूस और यूक्रेन से अपने लगभग सभी गेहूं आयात प्राप्त किए, जिनमें सोमालिया, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और मेडागास्कर शामिल हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, “आज, अगर ग्रामीण समुदायों का समर्थन करने के लिए और अधिक नहीं किया गया, तो भूख और खोई हुई आजीविका के मामले में तबाही का पैमाना भयावह होगा. ऐसा होने से रोकने के लिए बड़े पैमाने पर तत्काल मानवीय कार्रवाई की आवश्यकता है.”
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