October 30, 2024

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ओला ने वापस बुलाए 1441 ई-स्कूटर, गाड़ियों में लगातार आग लगने की घटनाओं के बाद लिया फैसला

ओला इलेक्ट्रिक ने अपने 1,441 ई-स्कूटर्स को वापस बुला लिया है। कंपनी के एक बयान के अनुसार वाहनों में आग लगने की घटनाओं को देखते हुए ये कदम उठाया गया है। कंपनी ने कहा कि पुणे में 26 मार्च को हुई आग की घटना की जांच जारी है और शुरुआती जांच में पाया गया कि यह एक अलग घटना थी।कंपनी ने कहा है कि आगे इस तरह की घटना न हो इसके लिए कंपनी एक बार फिर से ई-स्कूटर की जांच करेगी। ओला इलेक्ट्रिक ने आगे कहा कि इन स्कूटरों की हमारे इंजीनियरों द्वारा जांच की जाएगी।

मानकों के हिसाब से बनी है बैटरी
ओला इलेक्ट्रिक ने कहा कि उसका बैटरी सिस्टम पहले से ही नियमों के हिसाब से तैयार किया गया है। यूरोपीय मानक ECE 136 के अलावा इनका भारत के लिए नए प्रस्तावित मानक AIS 156 के लिए परीक्षण किया गया है।

प्योर ईवी इंडिया ने भी 2,000 यूनिट्स को किया रिकॉल
हैदराबाद की ईवी कंपनी ‘प्योर ईवी’ ने भी ई-स्कूटर की 2,000 यूनिट्स को रिकॉल किया है। प्योर ईवी के स्कूटर में हाल के दिनों में तेलंगाना और तमिलनाडु में आग की कई घटनाएं सामने आई हैं। इसी गड़बड़ी के चलते कंपनी ने यह कदम उठाया है।

दूसरी कंपनियों के ई-स्कूटर्स भी पकड़ रहे आग
इसके अलावा हाल में जितेन्द्र EV के 20 इलेक्ट्रिक स्कूटर्स में आग लग गई थी। वहीं ओकिनावा और ओला के ई-स्कूटर्स में भी आग लगने के मामले सामने आए हैं। कुछ समय पहले ओकिनावा ने भी अपने 3000 से ज्यादा इलेक्ट्रिक स्कूटर्स के लिए रिकॉल जारी किया है।

ई-स्कूटरों में आग लगने को लेकर क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?

इलेक्ट्रिल व्हीकल में आग लगने की वजहों को लेकर भास्कर ने ऑटो एक्सपर्ट टूटू धवन से पूछा, तो उन्होंने कहा, ”इलेक्ट्रिक वाहनों में आग लगने की सबसे बड़ी वजह चीन से आने वाली खराब क्वॉलिटी की बैटरियां हैं, जो सर्टिफाइड तक नहीं होतीं।” उन्होंने कहा, ”इसकी एक और वजह रैपिड या ठीक ढंग से चार्जिंग नहीं करना है।”
उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिक व्हीकल में आग लगने की सबसे प्रमुख वजहों में बैटरियां ही होती हैं। धवन ने ये भी कहा कि न केवल इलेक्ट्रिक बल्कि डीजल-पेट्रोल वाली गाड़ियों में लगने वाली आग में से 5-8% बैटरियों की वजह से ही लगती हैं।
वहीं देश की इलेक्ट्रिक व्हीकल कंपनी एथर एनर्जी के फाउंडर तरुण मेहता ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मैन्युफैक्चरर प्रोडक्ट्स को डिजाइन करने में पर्याप्त समय नहीं दे रहे हैं और सरकारी संस्थाओं द्वारा बनाए गए टेस्टिंग स्टैंडर्ड वास्तविक जीवन से जुड़ी सभी परिस्थितियों को सटीक ढंग से टेस्ट करने के लिए शायद पर्याप्त नहीं हैं।