आम आदमी को अप्रैल में महंगाई के मोर्चे पर झटका लगा है। खाने-पीने के सामान से लेकर तेल के दाम बढ़ने से महंगाई 8 साल के पीक पर पहुंच गई है। गुरुवार को जारी किए गए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) आधारित रिटेल महंगाई दर मार्च में बढ़कर 7.79% हो गई। मई 2014 में महंगाई 8.32% थी। खाने पीने के सामान की महंगाई बढ़कर 8.38% हो गई है।
यह लगातार चौथा महीना है, जब महंगाई दर RBI की 6% की ऊपरी लिमिट के पार रही है। फरवरी 2022 में रिटेल महंगाई दर 6.07%, जनवरी में 6.01% और मार्च में 6.95% दर्ज की गई थी। एक साल पहले अप्रैल 2021 में रिटेल महंगाई दर 4.23% थी।
बीते दिनों रिजर्व बैंक ने इस वित्त वर्ष की अपनी पहली मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग के बाद महंगाई के अनुमान को बढ़ाते हुए पहली तिमाही में 6.3%, दूसरी में 5%, तीसरी में 5.4% और चौथी में 5.1% कर दिया था। इसके बाद इमरजेंसी मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग में महंगाई की चिंताओं के कारण ब्याज दरों को 0.40% बढ़ाने का फैसला लिया था।
दुनियाभर की कई अर्थव्यवस्थाएं महंगाई को मापने के लिए WPI (Wholesale Price Index) को अपना आधार मानती हैं। भारत में ऐसा नहीं होता। हमारे देश में WPI के साथ ही CPI को भी महंगाई चेक करने का स्केल माना जाता है।
भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक और क्रेडिट से जुड़ी नीतियां तय करने के लिए थोक मूल्यों को नहीं, बल्कि खुदरा महंगाई दर को मुख्य मानक (मेन स्टैंडर्ड) मानता है। अर्थव्यवस्था के स्वभाव में WPI और CPI एक-दूसरे पर असर डालते हैं। इस तरह WPI बढ़ेगा, तो CPI भी बढ़ेगा।
रिटेल महंगाई की दर कैसे तय होती है?
कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मैन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई की दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 299 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।
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