November 14, 2024

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क्या तेलंगाना जीत पाएगी बीजेपी? समझिए मोदी-शाह के सामने केसीआर कितनी बड़ी चुनौती

उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में चुनाव जीतने के बाद भाजपा अपने अगले मिशन पर लग गई है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश के अलावा भाजपा की निगाहें जिस एक राज्य पर टिकी हुई हैं, वह तेलंगाना है। इस राज्य से भाजपा को बहुत उम्मीदें हैं। यही वजह है कि 18 साल बाद तेलंगाना में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही है। 4 साल पहले जिस राज्य के विधानसभा चुनाव में भाजपा का सिर्फ एक विधायक चुनकर आया था, आखिर इतना जल्दी क्या बदला कि इस राज्य को लेकर भाजपा इतनी उत्साहित हो गई है? क्या है भाजपा की राज्य में रणनीति? हमेशा चुनौतीपूर्ण रहने वाले दक्षिण के इस दुर्ग को क्या बीजेपी भेद पाएगी? आइए एक-एक करके जानते हैं इन सवालों के जवाब –

भले पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को महज 6.30 प्रतिशत वोट मिले थे, और उनका एक कैंडिडेट ही विधायक बन पाया था, लेकिन विधानसभा चुनाव के 6 महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के चार सांसद चुनकर आए, और मत प्रतिशत भी बढ़कर 19% को पार कर गया। इतना ही नहीं, लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी को कई उपचुनावों में भी बड़ी सफलता मिली थी। जिस एक जीत ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को उत्साहित कर दिया था, वह थी दुबक्का (Dubbaka Assembly) से एम रघुनंदन राव की जीत। दुब्बका विधानसभा की सीमाएं मौजूदा मुख्यमंत्री केसीआर व उनके बेटे और टीआरएस के वर्किंग प्रेसिडेंट केटीआर की विधानसभा और टीआरएस के तीसरे सबसे लोकप्रिय नेता हरीश राव की विधानसभा से लगती है, जो टीआरएस के जनरल सेक्रेटरी हैं। इसे टीआरएस का गढ़ कहा जाता है। वहीं, ग्रेटर हैदराबाद मुंसिपल कॉरपोरेशन के चुनावी नतीजों ने बीजेपी की उम्मीदों को पंख लगा लिया। इन्हीं दोनों जीत के बाद भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ा कि केसीआर को तेलंगाना में हराया जा सकता है।

दक्षिण भारत की राजनीति पर नजर रखने वाले पाॅलिटिकल एक्सपर्ट अनुराग नायडू बताते हैं, ‘आज के समय में बीजेपी ही राज्य की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन गई है। जिस तरह केसीआर और टीआरएस की तरफ से भाजपा पर हमले किए जा रहे हैं, उससे यह साफ है कि सत्ताधारी दल को भी लग रहा है कि भाजपा ही राज्य में उनको चुनौती दे रही है। ग्रेटर हैदराबाद मुंसिपल कॉरपोरेशन के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य बीजेपी के लिए इस बार विधानसभा चुनावों में बड़ा मौका है।’

तेलंगाना में दो बड़ी जातियां हैं। पहली जाति है मुन्नरकापू और दूसरी बड़ी जाति रेड्डी। इन दोनों जातियों का वोट बैंक 40% से अधिक है। इसके अलावा वेलमा जाति का भी प्रभाव नकारा नहीं जा सकता है। मुख्यमंत्री केसीआर की जाति भी यही है। भाजपा अभी राज्य में बिलकुल सधे हुए अंदाज में आगे बढ़ रही है। जहां एक तरफ मुन्नरकापू जाति से ताल्लुक रखने वाले बंडी संजय को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। वहीं, जी किशन रेड्डी को मंत्रिमंडल में जगह देकर इस जाति के वोट बैंक को भी लुभाने की कोशिश कर रही है। ओबीसी वोट बैंक को देखते हुए भाजपा ने इस राज्य के बड़े नेता के लक्ष्मण को उत्तर प्रदेश के कोटे से राज्यसभा भेजा है।

अनुराग नायडू कहते हैं, ‘यूं तो ओवैसी का प्रभाव 7 से 10 विधानसभा और 2 लोकसभा सीटों तक ही है, लेकिन भाजपा ओवैसी के जरिए पूरे प्रदेश में माहौल बना सकती है, जिसका फायदा उन्हें विधानसभा चुनाव में मिल सकता है।’ ग्रेटर हैदराबाद के मुंसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में ओवैसी की पार्टी की मदद से ही टीआरएस के पास सत्ता है। अनुराग बताते हैं, ‘हालांकि, राज्य में मुस्लिम आबादी बहुत नहीं है, लेकिन हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर करने जैसी चर्चाओं को हवा देने के पीछे भाजपा की सोची समझी रणनीति है।’